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“सिंधुताई सपकाळ….(माई)”

madhuri deepak patil by madhuri deepak patil
January 10, 2022
in सामाजिक, स्ञीवादी
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अनाथांची माय

सामाजिक कार्यकर्त्या

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अनाथांची माय म्हणून ओळखल्या जाणार्‍या सिंधुताई  सपकाळ (१४  नोव्हेंबर, १९४७ – ४  जानेवारी, २०२२)  या  अनाथांसाठी  सेवाकार्य  करणाऱ्या  भारतीय  सामाजिक  कार्यकर्त्या  आहेत.  त्यांनी  अनेक  खडतर  प्रसंगाना  तोंड  देत  देत  हजारों  अनाथ  मुलांचा  सांभाळ  केला  आहे.
जन्म१४  नोव्हेंबर,  इ.स.  १९४७
मृत्यू४  जानेवारी, २०२२ (वय ७४)
पुणे, महाराष्ट्रराष्ट्रीयत्वभारतीयटोपणनावेचिंधीनागरिकत्व भारतीयपेशासामाजिक  कार्यकर्त्यापुरस्कारडॉ.  बाबासाहेब  आंबेडकर  समाज  भूषण  पुरस्कार (२०१२)[१] पद्मश्री  पुरस्कार (२०२१)

विवाह  वयाच्या  ९  व्या  वर्षी  वयाने  २६  वर्षांनी  मोठे  असलेल्या  श्रीहरी  सपकाळ  यांच्याशी  झाला.  घरी  प्रचंड  सासुरवास  होता.  कुटुंबात  शैक्षणिक  वातावरण  नाही.  जंगलात  लाकूडफाटा,  शेण  गोळा  करताना  सापडलेले  कागदाचे  तुकडे  माई  घरी  आणायच्या  आणि  उंदराच्या  बिळांत  लपवून  ठेवायच्या.  क्वचित  घरी  एकट्या  असल्या  तर  त्या  अभ्यास  करण्याचा  प्रयत्न  करीत.

अठराव्या  वर्षापर्यंत  माईंची  तीन  बाळंतपणे  झाली.  त्या  चौथ्या  वेळी  गर्भवती  असताना  त्यांनी  त्यांच्या  आयुष्यातला  पहिला  संघर्ष  केला.  तेव्हा  गुरे  वळणे  हाच  व्यवसाय  असायचा.  गुरेही  शेकड्यांनी  असायची.  त्यांचे  शेण  काढता  काढता  बायकांचे  कंबरडे  मोडायचे.  शेण  काढून  बाया  अर्धमेल्या  व्हायच्या.  पण  त्याबद्दल  कोणतीही  मजुरी  मिळायची  नाही.  रस्त्यावर  मुरूम  फोडणाऱ्यांना  मजुरी,  पण  शेण  काढणाऱ्यांना  नाही.  या  शेणाचा  लिलाव  फॉरेस्टवाले  करायचे.  इथे  सिंधुताईंनी  बंड  पुकारले  आणि  लढा  सुरू  केला.  त्यामुळे  या  लिलावात  ज्यांना  हप्ता  मिळायचा  त्यांच्या  हप्त्यावर  गदा  आली.  हा  लढा  जिंकल्या  पण  त्यांना  या  लढ्याची  जबर  किंमत  चुकवावी  लागली.  बाईंच्या  या  धैर्याने  गावातील  जमीनदार,  दमडाजी  असतकर  दुखावला  गेला  होता.  जंगलखात्याकडून  येणारी  मिळकत  बंद  झाली
दमडाजीने  सिंधुताईंच्या  पोटातील  मूल  आपले  असल्याचा  प्रचार  सुरू  केला.  नवऱ्याच्या  मनात  त्यांच्या  चारित्र्याबद्दल  संशय  निर्माण  झाला  आणि  पूर्ण  दिवस  भरलेल्या  ताईंना  त्याने  बेदम  मारून  घराबाहेर  काढले.  गुरांच्या  लाथा  बसून  मरतील  म्हणून  तशा  अर्धमेल्या  अवस्थेत  त्यांना  गोठ्यात  आणून  टाकले.  त्या  अवस्थेत  त्यांची  कन्या  जन्माला  आली.  नवऱ्याने  हाकलल्यानंतर  गावकऱ्यांनीही  हाकलले.  माराने  अर्धमेल्या  झालेल्या  सिंधुताई  माहेरी  आल्या,  पण  सख्ख्या  आईनेही  पाठ  फिरवली.  परभणी-नांदेड-मनमाड  रेल्वे  स्टेशनांवर  सिंधुताई  भीक  मागत  हिंडायच्या.  चतकोर  भाकर,  उष्टावलेले  एखादे  फळ  हाती  लागेल,  म्हणून  रात्रभर  रेल्वे  रुळांच्या  कडेने  फिरायच्या.एकदा  जळगाव  जिल्ह्यातील  पिंपराळा  स्टेशनवर  त्यांनी  आत्महत्येचा  प्रयत्नही  केला.  पण  ‘लहान  मुलीचा  जीव  घेतला  तर  पाप  लागेल’  म्हणून  मागे  फिरल्या.  मग  पुन्हा  भीक  मागत  पोट  भरणे  सुरू  झाले.  सिंधुताई  दिवसभर  भीक  मागायच्या  आणि  रात्री  स्टेशनवरच  झोपायच्या.  पण  तिथे  त्यांनी  कधी  एकटे  खाल्ले  नाही.  स्टेशनवरच्या  सगळ्या  भिकाऱ्यांना  बोलावून  त्या  मिळालेल्या  अन्नाचा  काला  करायच्या  आणि  मग  सर्व  भिकारी  एकत्र  बसून  जेवायचे.  त्यांनीच  २१  वर्षांच्या  ताईंना  संरक्षण  दिले.  दोन  दिवस  काहीच  भीक  मिळाली  नसल्याने  त्यांच्या  लक्षात  आले  की  तिथे  कायम  राहता  येणार  नाही.  शेवटी  सिंधुताईंनी  स्मशान  गाठले.

अनाथ  मुलांना  सांभाळून  त्यांच्या  जीवनाला  दिशा  देण्यासाठी  सिंधुताई  यांनी  ममता  बाल  सदन  संस्थेची  स्थापना  केली.  १९९४  साली  पुण्याजवळ  पुरंदर  तालुक्यात  कुंभारवळण  या  गावात  ही  संस्था  सुरु  झाली.  आपली  कन्या  ममता  हिला  दगडूशेठ  हलवाई  संस्थेच्या  माध्यमातून  शिक्षणासाठी  सेवासदन  येथे  दाखल  केले  आणि  त्यांनी  इतर  अनाथ  आणि  बेवारस  मुलांना  आधार  दिला.  येथे  लहान  मुलांना  सर्व  शिक्षण  दिले  जाते.  त्यांच्या  भोजन,  कपडे  अन्य  सुविधा  यांची  उपलब्धता संस्थेकडून  केली  जाते.  शिक्षण  पूर्ण  झाल्यावर  येथील  मुले  आर्थिकदृष्ट्या  स्वावलंबी  होतील  यासाठीही  त्यांना  मार्गदर्शन  दिले  जाते.  आर्थिक  दृष्ट्या  स्वयंपूर्ण  झाल्यावर  या  युवक  युवतींना  योग्य  जोडीदार  शोधून  देणे  आणि  त्यांच्या  विवाहाचे  आयोजन  करणे  हे  कार्यही  संस्थेकडूनच  केले  जाते.  अशी  सुमारे  १०५०  मुले  या  संस्थेत  राहिलेली  आहेत. 

सिंधूताईंनी  अन्य  समकक्ष  संस्थाही  स्थापन  केलेल्या  आहेत  त्या  याप्रमाणे-

बाल  निकेतन  हडपसर,  पुणे

सावित्रीबाई  फुले  मुलींचे  वसतिगृह  ,   चिखलदरा

अभिमान  बाल  भवन,  वर्धा

गोपिका  गाईरक्षण  केंद्र,  वर्धा  (  गोपालन) 

ममता  बाल  सदन,  सासवड

सप्तसिंधु  महिला  आधार  बालसंगोपन  व  शिक्षणसंस्था,  पुणे

सिंधुताई  यांनी  आपल्या  संस्थेच्या  प्रचारासाठी  आणि  कार्यासाठी  निधी  संकलन  करण्याच्या  हेतूने  प्रदेश  दौरे  केले  आहेत  आंतरराष्ट्रीय  व्यासपीठावर  त्यांनी  आपल्या  बोलण्याने  आणि  काव्याने  समाजाला  प्रभावित  केले  आहे.  परदेशी  अनुदान  मिळणे  सोपे  जावे  या  हेतूने  त्यांनी  मदर  ग्लोबल  फाउंडेशन  संस्थेची  स्थापना  केली  आहे.

सिंधुताईंना  सुमारे  ७५०  राष्ट्रीय  आणि  आंतरराष्ट्रीय  पुरस्कार  मिळाले  आहेत.त्यांतले  काही :-

पद्मश्री  पुरस्कार  (२०२१)

महाराष्ट्र  शासनाचा डॉ.  बाबासाहेब  आंबेडकर  समाज  भूषण  पुरस्कार (२०१२)

पुण्याच्या  अभियांत्रिकी  कॉलेजचा  ‘कॉलेज  ऑफ  इंजिनिअरिंग  पुरस्कार’  (२०१२)

महाराष्ट्र  शासनाचा  ‘अहिल्याबाई  होळकर  पुरस्कार’  (२०१०)

मूर्तिमंत  आईसाठीचा  राष्ट्रीय  पुरस्कार  (२०१३)

आयटी  प्रॉफिट  ऑर्गनायझेशनचा  दत्तक  माता  पुरस्कार  (१९९६)

सोलापूरचा  डॉ.  निर्मलकुमार  फडकुले  स्मृती  पुरस्कार

राजाई  पुरस्कार

शिवलीला  महिला  गौरव  पुरस्कार.

श्रीरामपूर-अहमदगर  जिल्हा  येथील  सुनीता  कलानिकेतन  न्यासातर्फे  कै  सुनीता  त्र्यंबक  कुलकर्णी  यांच्या  स्मृतिप्रीत्यर्थ  दिला  जाणारा  ‘सामाजिक  सहयोगी  पुरस्कार’  (१९९२)

सीएनएन-आयबीएन  आणि  रिलायन्स  फाउंडेशनने  दिलेला  ‘रिअल  हीरो  पुरस्कार’  (२०१२).

२००८  –  दैनिक  लोकसत्ताचा  ‘सह्याद्रीची  हिरकणी  पुरस्कार’.

प्राचार्य शिवाजीराव  भोसले स्मृती  पुरस्कार  (२०१५)

डॉ.  राम  मनोहर  त्रिपाठी  पुरस्कार  (२०१७)

पुणे  विद्यापीठाचा  ‘जीवन  गौरव  पुरस्कार’ 

पद्मश्री  पुरस्कार (२०२१)
सिंधुताईंच्या  जीवनावर  आधारलेला मी  सिंधुताई  सपकाळ हा  मराठी  चित्रपट  प्रदर्शित
प्रदर्शित झाला आहे. त्यात तेजस्विनी पंडित यांनी सिंधुताईंची भूमिका साकारली आहे.

सिंधुताई सपकाळ यांच्या जीवनावर भार्गव फिल्म्स ॲन्ड प्रॉडक्शनचा ’अनाथांची यशोदा’ या नावाचा अनुबोधपट १६-२-२०१४ रोजी निघाला.

माहिती व संकलन- थेट गुगल

फोटो साभार-गुगल

©मधुदिप ब्लाॅग्ज

Tags: sindhutai sapkalअनाथ मुलेपुरस्कारसामाजिक कार्यकर्त्यासिंधुताई सपकाळ
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मी एक ईंंजिनिअर असून जाॅॅब करत नाही कारण फर्स्ट प्रायोरिटी फॅॅमिली....आत्तापर्यंंच्या आयुष्यात खुप चढ-ऊतार पाहिले आहेत त्यामूळे लिहायला बळ मिळाल. माझ लिखाण माझ्यासाठी पॅॅशन आहे आणि माझ आयुष्य माझ्यासाठी खुप मोठी देणगी आहे त्यामुळे दोन्हीही भरभरून जगतेय.

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